भारत में संभवतः किसी ने भी - कभी भी इस समस्या पर सोचा भी नहीं होगा कि प्लास्टिक का प्रयोग अनेक रोगों के साथ साथ नपुंसकता का भी कारण है |
कया भारत की सरकार को इस खतरे की जरा भी जानकारी नहीं थी ?
प्लास्टिक के अनेक खतरों से शायद जनता को सजग भी कर देते - लेकिन सेक्यूलर सियासी गिरोहों की हुकूमत अच्छी तरह - निर्विरोध - तभी चल सकती है जब लोग नपुंसक हो जायें |
कामोत्तेजक औषधियों के निरन्तर बढ़ते उद्योगों के विज्ञापन इस बात का प्रमाण है कि लोग देश-व्यापी अन्याय - अत्याचार - भ्रष्टाचार से लड़ने के लिये नहीं बल्कि अपनी व्यक्तिगत समस्या का क्षणिक समाधान करने के लिये इनके उपयोग के लिये आतुर हैं |
पश्चिम के ठंडे देशों के वैज्ञानिकों ने प्लास्टिक का आविष्कार किया और बाद में इसका प्रयोग ठंडे मुल्कों में खाद्य तथा पेय पदार्थ को रखने में भी किया जाने लगा |
प्लास्टिक एक अवधि के बाद अपने रसायन छोड़ने लगता है और वे रसायन खाद्य तथा पेय पदार्थ में घुलने मिलने लगते हैं |
यदि गरम देश हो तो प्लास्टिक के रसायन छूटने उसमें रखे हुए और खाद्य तथा पेय पदार्थ में घुलने मिलने की प्रक्रिया तीव्र हो जाती है |
यदि पानी का एक उदाहरण लें तो पता चलेगा कि उसकी बोतल पर लिखा रहता है - प्रयोग के पश्चात बोतल को नष्ट कर दें |
यह प्रयोग के पश्चात बोतल को नष्ट कर दें वाली चेतावनी ठंडे देशों ने अपने वातावरण के अनुसार लिखी थी |
भारत एक गरम देश है - यहाँ तो पानी भरी हुई प्लास्टिक की बोतल को बाहर धूप में रखना ही नहीं चाहिये - परन्तु अधिकांश विक्रेता पानी भरी हुई प्लास्टिक की बोतल को बाहर धूप में ही नुमाइश के लिये रखते हैं और कई दिनों तक ये बोतलें गर्मी में पड़ी रहती हैं |
उसी तरह कोला ड्रिंक्स - जिनमें कई प्रकार के एसिड्स होते हैं - वे भी बाहर धूप में ही नुमाइश के लिये रखे हुए मिलेंगे |
शराब तक प्लास्टिक की बोतलों में मिलती हैं - और कई तरल दवाइयाँ भी |
जितने भी नॉन-स्टिक बर्तन होते हैं - उनमें से अधिकांश की नॉन-स्टिक कोटिंग - जो एक तरह का प्लास्टिक ही है - धीरे धीरे उपयोगकर्ता के पेट में जाती है |
इस तरह - प्लास्टिक के प्रयोग से आयी हुई नपुंसकता की खासियत यह है कि संतान भी नपुंसक पैदा होती है |
उस ज़रूर विचार करें और हर प्रकार की नपुंसकता से बचे..
"प्लास्टिक कचरामय सब जग जानी, 
तौबा करहूँ पकरि दोऊ कानी।

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