अरबों साल पहले ब्रह्मांड नहीं था, सिर्फ अंधकार था। अचानक एक बिंदु की उत्पत्ति हुई। फिर वह बिंदु मचलने लगा। फिर उसके अंदर भयानक परिवर्तन आने लगे। इस बिंदु के अंदर ही होने लगे विस्फोट। शिव पुराण मानता है कि नाद और बिंदु के मिलन से ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई।
नाद अर्थात ध्वनि और बिंदु अर्थात प्रकाश। इसे अनाहत या अनहद (जो किसी आहत या टकराहट से पैदा नहीं) की ध्वनि कहते हैं जो आज भी सतत जारी है इसी ध्वनि को हिंदुओं ने ॐ के रूप में व्यक्त किया है। ब्रह्म प्रकाश स्वयं प्रकाशित है। परमेश्वर का प्रकाश।
'सृष्टि के आदिकाल में न सत् था न असत्, न वायु थी न आकाश, न मृत्यु थी न अमरता, न रात थी न दिन, उस समय केवल वही था जो वायुरहित स्थिति में भी अपनी शक्ति से साँस ले रहा था। उसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं था।' -
ऋग्वेद.............
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