बड़ो के पैर छूने के वैज्ञानिक कारण एवम पैर छूने का भारतीय परंपरा।
*प्रातकाल उठि कै रघुनाथा। मातु पिता गुरु नावहिं माथा॥
आयसु मागि करहिं पुर काजा। देखि चरित हरषइ मन राजा॥

भावार्थ:-श्री रघुनाथजी प्रातःकाल उठकर माता-पिता और गुरु को मस्तक नवाते हैं और आज्ञा लेकर नगर का काम करते हैं। उनके चरित्र देख-देखकर राजा मन में बड़े हर्षित होते हैं॥
हमारे पूर्वजो और प्राचीन समय के विद्वानों की सबसे बड़ी खोज यह थी की उन्होंने प्रक्रति के कई रहस्यों को आज से हजारो सालो पहले ही समझ लिया था, वो भी जब उस दौर में आजकल जैसी सुविधाएँ नहीं थी।
न सिर्फ उन्होंने ने इन रहस्यों को समझा, उनके महत्त्व को पहचाना बल्कि साथ ही साथ उन्होंने इन बातों को हमारे दिनचर्या में ऐसे जोड़ा, जिस से की वो हमारे संस्कार बनते चले गए।
अपने गुरुजन बड़े बूढों और माता पिता का पैर छूना एक ऐसा ही संस्कार है. आजकल लोग इस संस्कार का महत्व नहीं समझने की वजह से इसे नहीं करते या व्यर्थ की खानापूर्ति मान लेते है।
पैर छूने के पीछे छुपा वैज्ञानिक/मानसिक कारण–
विज्ञानं इस बात को सिद्ध कर चुका है कि हमारे शरीर के चारो तरफ एक आभामंडल होता है। लोगों की ऊर्जा-स्तर (energy level) के अनुसार हर मनुष्य का आभा मंडल अलग ऊर्जा और अलग रंग का होता है. जैसे कुछ लोग फुर्त और कुछ आलसी होते है. यह आभा मंडल हमारे ऊर्जा, मानसिक शक्ति, इच्छा-शक्ति और विचारो के प्रकार पर निर्भर करता है. हमारे विचारो और व्यव्हार से इनमे परिवर्तन आता रहता है।
जब हम किसी का पैर छूते है तो यह दिखाता है की हम अपने अहम् से परे होकर किसी की गुरुता , सम्मान और आदर की भावना से चरण स्पर्श कर रहे है. किसी के समक्ष झुकना समर्पण और विनीत भाव को को दर्शाता है. जिसका हम पैर छूते है इस क्रिया से उसपर तुरंत मनोवैज्ञानिक असर पड़ता है, और उसके ह्रदय से प्रेम, आशीर्वाद और संवेदना, सहानुभूति की भावनाएं निकलती है जो उसकी आभामंडल में परिवर्तन लाती है।
पैर छूने से हम उस व्यक्ति के आभामंडल से अपने आभामंडल में इन ऊर्जाओं को ग्रहण करते है जो की हमारे मनो-मष्तिष्क पर सकारात्मक प्रभाव डालती है और हमारे आभामंडल को अधिक ऊर्जावान बनाती है, हमारी नकारात्मक सोच और विचारों से हमें मुक्ति दिलाती है. बड़े लोगों के दिए हुए आशीर्वाद हमारे सौभाग्य में सहायक बनती है।
सही ढंग से अच्छी भावना के साथ पैर छूना चाहिए जिस से की वह व्यक्ति आपके सम्मान और आदर को अनुभव कर सके और उसके मन में आपके प्रति प्रेम और आशीर्वाद की भावनाएं उत्पन्न हो. इसलिए हमें निःसंकोच बड़ो के पैर छूना चाहिए और उनके आशीर्वाद को ग्रहण करना चाहिए।
प्रणाम प्रेम है, प्रणाम (नमस्कार) अनुशासन है ,प्रणाम आदर सीखाता है ..प्रणाम शीतलता है, प्रणाम से सुविचार आते हैं ,प्रणाम झुकना सिखाता है.. प्रणाम क्रोध मिटाता है ,प्रणाम आंसू धो देता है, प्रणाम अहंकार मिटा देता है।
स्नान से तन, दान से धन, सहनशीलता से मन, एवं ईमानदारी से जीवन शुद्ध बनता हैं ..वैसे ही प्रणाम हमारी संस्कृती और सभ्यता हैं..दोस्तों मान सम्मान हो, या प्यार एवं प्रणाम हो, यह कभी भी मांगने से नहीं मिलते, ये जीवन की वो पूंजी है, जिसे कमाना पड़ता है ..और यह पूंजी वही कमा पाता है ,जो दूसरों पर भी यही खर्च करता है।.....


- आज़ाद

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