जन्म दिन पर नमन्
अमृता प्रीतम
"पहली महिला साहित्यकार थीं जिन्हें ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से नवाज़ा गया। 
साहित्य में उनके योगदान के लिए उन्हें भारत सरकार द्वारा दूसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान ‘पद्म विभूषण’ भी प्राप्त हुआ।"

"रसीदी टिकट में वह लिखती हैं-“एक सपना था कि एक बहुत बड़ा किला है और लोग मुझे उसमें बंद कर देते हैं।
बाहर पहरा होता है। 
भीतर कोई दरवाजा नहीं मिलता। 
मैं किले की दीवारो को उंगलियों से टटोलती रहती हूं, पर पत्थर की दीवारों का कोई हिस्सा भी नहीं पिघलता। 
सारा किला टटोल-टटोल कर जब कोई दरवाजा नहीं मिलता, 
तो मैं सारा जोर लगाकर उड़ने की कोशिश करने लगती हूं। 
मेरी बांहों का इतना जोर लगता है कि मेरी सांस चढ़ जाती है। 
फिर मैं देखती हूं कि मेरे पैर धरती से ऊपर उठने लगते हैं। 
मैं ऊपर होती जाती हूं, और ऊपर, और फिर किले की दीवार से भी ऊपर हो जाती हूं। 
सामने आसमान आ जाता है। 
ऊपर से मैं नीचे निगाह डालती हूं। 
किले का पहरा देने वाले घबराए हुए हैं, गुस्से में बांहें फैलाए हुए, पर मुझ तक किसी का हाथ नहीं पहुंचता।”
“सोच रही हूं, हवा कोई भी फ़ासला तय कर सकती है, वह आगे भी शहरों का फ़ासला तय किया करती थी। 
अब इस दुनिया और उस दुनिया का फ़ासला भी जरूर तय कर लेगी”।
एक औरत, औरतों के प्रति समाज का नजरिया, एक लेखिका और एक प्रेमिका के बीच ही अमृता ताउम्र उलझती रहीं और इन उलझनों के दस्तावेजों के दौर पर उनकी सैकड़ों रचनाएं हमारे बीच मौजूद हैं। 
जो हर दम उनकी जीवनगाथा बयान करती रहेंगी।
आज 31 अगस्त अमृता का जन्मदिन है।
अमृता की यादें कभी जाती नहीं पर जन्मदिन में याद करना भी एक रस्म है।"







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