कुछ रिश्ते.....!
ग़र फुर्सतों के मोहताज़ होते....तो
कबके मर चुके होते...।।
ग़र आदतों के मोहताज़ होते
जाने कबके बदल गए होते...
ग़र शोहबतों के मोहताज़ होते
बिगड़ गए होते.....।
ये रिश्ते ग़र
वादों और कसमों के मोहताज़ होते
टूट चुके होते......।
ख़ामोशी ओढ़े ये कुछ रिश्ते
हमारे शब्दों में जान भरते हैं...
ये कुछ रिश्ते
धूप में छाँव बनते हैं ।
ये रिश्ते.....हमें
हमारे होने का अहसास कराते हैं
ये कुछ रिश्ते......सिर्फ़
चाहतों के रिश्ते होते हैं
हमारी रूहों में बसे
रूहानी रिश्ते होते हैं.....
मुद्दतों बाद भी
इन्हें हम शिद्दतों से जीते हैं...।
यक़ीन जानो .......हम जिंदगी में
असल मायनों में
खुद को तब ही जीते हैं.....।
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