सिखों के दशम गुरु गोबिंद सिंह के गुरु सूर्यवंशी योद्धा श्री बज्जर सिंह राठौड को नमन .... 🙏🏻👇👇👇
जिनके विषय में हमारे राष्ट्र के इतिहास व् सिख धर्म के युद्ध विकास में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है,जिससे हमारे राष्ट्र में बहुत कम लोग परिचित हैं...
श्री बज्जर सिंह राठौड सिखों के दश्म गुरू श्री गोविंद सिंह जी के गुरू थे ,जिन्होने उनको अस्त्र शस्त्र चलाने मे निपुण बनाया था।
उन्होंने गुरू गोविंद सिंह जी को ना केवल युद्ध की कला सिखाई बल्कि उनको बिना शस्त्र के द्वंद युद्ध, घुड़सवारी, तीरंदाजी मे भी निपुण किया।
उन्हे राजपूत -मुगल युद्धो का भी अनुभव था और प्राचीन भारतीय युद्ध कला मे भी पारंगत थे।
वो बहुत से खूंखार जानवरो के साथ अपने शिष्यों को लडवाकर उनकी प
रिक्षा लेते थे।
गुरू गोविंद सिंह जी ने अपने ग्रन्थ बिचित्तर नाटक मे इनका वर्णन किया है।
उनके द्वारा सामान्य सिखों का सैन्यिकरण किया गया जो पहले अधिकांश कृषि व् व्यावसाई थे और उन्हें भारतीय युद्ध कला (Martial Art) गटखा का प्रशिक्षण दिया, यह मात्र सिखों में ही नही बल्की पूरे देश मे क्रांतिकारी परिवर्तन प्रमाणित हुआ।
बज्जर सिंह राठौड जी की इस विशेषता की प्रशंसा यह कहकर की जाती है कि जो युद्ध कला मात्र राजपूतों तक सीमित थी, उन्होंने मुग़लो के विरोध संग्राम के उपक्रम हेतु उसे खत्री सिख गुरूओ को भी सिखाया।
यह श्री बज्जर सिंह राठौड़ की शिक्ष व् श्रम का ही प्रतिफल था कि पंजाब में हिन्दुओ की बड़ी जनसँख्या जिसमें किसान, मजदूर, व्यापारी इतियादी थे, उनका सैन्यकरण करना संभव हो सका था।
===पारिवारिक पृष्टभूमि===
बज्जर सिंह जी सूर्यवंशी राठौड राजपूत वंश के शासक वर्ग से संबंध रखते थे। वह मारवाड के राठौड राजवंश के वंशंज थे --
वंशावली--
राव सीहा जी
राव अस्थान
राव दुहड
राव रायपाल
राव कान्हापाल
राव जलांसी
राव चंदा
राव टीडा
राव सल्खो
राव वीरम देव
राव चंदा
राव रीढमल
राव जोधा
राव लाखा
राव जोना
राव रामसिंह प्रथम
राव साल्हा
राव नत्थू
राव उडा ( उडाने राठौड इनसे निकले 1583 मे मारवाड के पतंन के बाद पंजाब आए)
राव मंदन
राव सुखराज
राव रामसिंह द्वितीय
सरदार बज्जर सिंह ( अपने वंश मे सरदार की उपाधि लिखने वाले प्रथम व्यक्ति) इनकी पुत्री भीका देवी का विवाह आलम सिंह चौहान (नचणा) से हुआ जिन्होंने गुरू गोविंद सिंह जी के पुत्रो को शस्त्र विधा सिखाई--।
1710 ईस्वी के चॉपरचिरी के युद्ध में इन्होंने भी बुजुर्ग अवस्था में बन्दा सिंह बहादुर के साथ मिलकर वजीर खान के विरुद्ध युद्ध किया और अपने प्राणों की आहुति दे दी।
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