मैं अग्निपुत्री हूं 

मैं अग्निपुत्री हूं 
मैं रणचण्डी हूं ।

यह तमस यह कोलाहल, 
यह धधकता हलाहल 
करना चाहता है मेरा संहार ।
किन्तु मैं उठ खड़ी होती हूं, 
मैं अग्निपुत्री हूं , 
मैं रणचण्डी हूं ।

यह संसार निरन्तर, 
आक्रमण करता मुझपर, 
चाहता है दीपशिखा को बुझाना, 
किन्तु मैं उठती हूं भभक, 
मैं अग्निपुत्री हूं , 
मैं रणचण्डी हूं ।

मेरा चित्त निर्मल, 
मेरी बुद्धि उज्वल , 
नहीं कोई दीपशिखा, हूं मैं दावानल, 
मैं अग्निपुत्री हूं , 
मैं रणचण्डी हूं ।

कुतर्क मुझे झुका नहीं सक्ते, 
झंझावात मुझे डरा नहीं सकते, 
मैं हूं आलोक-प्रपात, 
मैं अग्निपुत्री हूं , 
मैं रणचण्डी हूं ।

लक्ष्मी हूं मैं, दूर्गा हूं, 
राधा हूं मैं, भारती हूं , 
धरापुत्री हूं मैं, और याज्ञसेनी भी,
मैं अग्निपुत्री हूं , 
मैं रणचण्डी हूं । ................


                                                            - आज़ाद 
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