"ओ मगध ! कहां मेरा अशोक ?
वह चन्द्रगुप्त बलधाम कहाँ ?
पैरों पर ही है पड़ी हुई
मिथिला भिखारिणी सुकुमारी
तू पूछ कहाँ इसने खोयी
अपनी अनंत निधियां सारी ? 
वैशाली के भग्नावशेष से
पूछ लिच्छवी-शान कहाँ ?
ओ री उदास गण्डकी ! बता
विद्यापति कवि के गान कहाँ ?
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कह दे शंकर से, आज करें 
वे प्रलय-नृत्य फिर एक बार !
सारे भारत में गूँज उठे,
'हर-हर-बम का फिर महोच्चार !
तू मौन त्याग कर सिंहनाद,
रे तपी ! आज तप का न काल !"

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पढ़िए और रोइए...खून के आंसू रोइए, क्योकि बिहार -दिवस का भोंडा मज़ाक चालू है, सैकड़ों करोड़ फूंक कर।

#आज़ाद  #Aazaad #Azad #Rashtraputra

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