2014 के मोदी सरकार आने से पहले तक दूरदर्शन से लेकर निजी चैनलों पर हर साल 31 अक्टूबर को इंदिरा गांधी के उस अंतिम भाषण की लाइने बार बार सुनते आये थे, जिसमें उन्होंने अपने लहू की अंतिम बूँद को देश के लिए बलिदान करने का मार्मिक आह्वान किया था जिसे सुन कर ना जाने कितने कांग्रेसी भावुक हो आँखे नम कर लेते होंगे.
लेकिन ना जाने क्यों मुझे उनकी हत्या कभी बलिदान नहीं लग पाई, ऐसा लगता मानो विज्ञापन की तरह बार बार यह दिखा कर, जता कर सिर्फ एक मेनोरिज्म खड़ा कर दिया है. बलिदान किसे कहते हैं? जब आप देश की संप्रभुता पर किसी भी किस्म के किये हमले के विरोध में संघर्ष कर अपनी जान न्योछवर करते हो ना कि अपने स्वार्थ की खातिर खड़ी की समस्या को मूर्खतापूर्ण तरीके से सुलझाने में मारे जाते हो.
मुगलों के खिलाफ लड़ते लड़ते जितना सिक्खों का नुकसान नहीं हुआ था उससे हजार गुणा ज्यादा नुकसान इंदिरा गांधी की पंजाब नीति ने कर दिया हैं. भस्मासुर को खड़ा कर अपनी अदूरदर्शिता भरी कूटनीति का ही परिचय दिया था.
धर्म और राजनीति के घालमेल से जो निकला वह आंतक का चेहरा दशकों तक पंजाब को जलाता रहा और इस जलाने से भी ज्यादा भयावह यह था कि सदियों के ताने बाने को छिन्न भिन्न कर दिया था.
उस समय के ख्यात पत्रकार कुलदीप नैय्यर की लिखी किताब अनुसार इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी और अ ज्ञानी जैल सिंह ने अकाली दल को हराने के लिए भिंडरावाले का कद इतना बड़ा बना दिया था जो अंततः इंदिरा गांधी की मौत का कारण बना.
जेल सिंह का बाकयदा इंटरव्यू हुआ था इस काम के लिए, उनका अक्खड़ मिजाज ही संजय गांधी को भाया था जो स्वयं ऐसे मिजाज के थे.
क्या आप जानते हैं कि 1980 के चुनाव में भिंडरावाले ने तीन सीटो पर कांग्रेस उम्मीदवार का प्रचार भी किया था जिसमें अमृतसर की सीट भी शामिल थी और कांग्रेस ने उन्हें धन से सहायता भी की थी.
कांग्रेस के शह के कारण भिंडरावाले का कद इतना बढ़ चुका था कि कुलदीप नैय्यर ने एक जगह लिखा भी था कैसे वह भिंडरावाले से मिलने गए थे और उनका इंटरव्यू ले रहे थे तब उसी समय पंजाब कांग्रेस के कद्दावर मंत्री तथा देश रक्षा और विदेश मंत्री रह चुके मंत्री स्वर्ण सिंह भी मिलने आये हुए थे.
चूँकि वहां एकमात्र रखी चेयर पर कुलदीप नैय्यर बैठे थे और तख़्त पर भिंडरावाले विराजमान थे, सो जैसे ही मंत्री आये तो कुलदीप नैय्यर ने उठ कर उन्हें अपनी कुर्सी पेश की. मंत्री यह कहते हुए भिंडरावाले के सामने जमीन पर बैठ गए कि “संतो के सामने मैं उपर कैसे बैठ सकता हूँ, मैं यहीं ठीक हूँ”
ऐसा ही सत्यनाश नेहरु ने कश्मीर मामले में किया हुआ है!
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