अजब इक शोर सा बरपा है कहीं
कोई खामोश हो गया है कहीं
है कुछ ऐसा के जैसे ये सब कुछ
अब से पहले भी हो चुका है कहीं
जो यहाँ से कहीं न जाता था
वो यहाँ से चला गया है कहीं
न जाने क्या हो गया,
के चीजों को रखता है कहीं हूँ ढूंढता कहीं हूँ ,
तू मुझे ढूंढ़, मैं तुझे ढुंढू
कोई हम में से रह गया है कहीं
इस जिस्म से हो के कोई विदा
इस जिस्म में छुप गया है कहीं....

- आज़ाद



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