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नीर क्षीर विवेके हंस आलस्यम् त्वमेव तनुषे चेत्, विश्वस्मिन् अधुना अन्य: कुलव्रतं पालयिष्यति कः ।। हंस यदि पानी तथा दूध भिन्न करना छोड़ दे, तो दूसरा कौन उसके इस कुलव्रत का पालन कर सकता है? यदि बुद्धिवान् तथा कुशल मनुष्य ही अपना कर्तव्य करना छोड़ दे, तो दूसरा कौन वह कार्य कर सकता है?
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